Monday, May 24, 2010

क्या कहूँ

तुम्हें किस नाम से पुकारूं
तुम्हारी किस किस अदा का क्या क्या नाम रखूँ

तुम्हें खुशनुमा हवा का केवल एक झोंका कहूँ
या अन्दर तक झंझोड़ देने वाली तीव्र आंधी...

तुम्हें मेरी आत्मा को "तृप्त" करने वाला शीतल नीर कहूँ
या मेरी देह को अमृत बनाने वाला क्षीर सागर...

तुम्हारे जीवन में मेरे अस्तित्व को
अपनी खुशनसीबी समझूँ
या तुम्हारी उदारता का एक सूक्ष्म उद्हारण...

तुम्हें चारों तरफ निस्वार्थ प्रेम की
रंगीन कलियों की महक बिखेरने वाली पवन कहूँ
या खुशबूदार खिलखिलाते फूलों से सजा बागीचा...

निर्णय नहीं ले पा रहीं हूँ
कि...

तुम्हें चिलचिलाती गर्मी में
धरा को हरा भरा बनाने वाली वर्षा की पहली बूँद कहूँ
या सावन के नीर बरसाते घनघोर बादल...

तुम्हें काले अँधेरे के सीने को चीरती हुई रोशनी की किरण कहूँ
या पूनम की रात्री का मदहोश कर देने वाले चाँद की चाँदनी...

तुम्हें शंख में छिपा मोती कहूँ
या कुबेर की खज़ाना...

समझ नहीं पा रही हूँ
कि...

तुम्हें ब्रह्म कि ऊर्जा बिखेरने वाला रथ कहूँ
या स्वयं ब्रह्म...

नजाने क्यों

 नजाने क्यों, सब को सब कुछ पाने की होड़ लगी है नजाने क्यों, सब को सबसे आगे निकलने की होड़ लगी है जो मिल गया है, उसको अनदेखा कर दिया है और जो...