tag:blogger.com,1999:blog-37385718711593453122024-03-14T15:11:43.005+05:30VisionWhat you "see"is highly interrelated to what you "are".Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.comBlogger42125tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-45429373509025753772023-10-05T20:49:00.005+05:302023-10-05T20:49:35.576+05:30नजाने क्यों<p> नजाने क्यों, सब को सब कुछ पाने की होड़ लगी है</p><p>नजाने क्यों, सब को सबसे आगे निकलने की होड़ लगी है</p><p>जो मिल गया है, उसको अनदेखा कर दिया है</p><p>और जो नहीं मिला है, उसको जीत जाने की होड़ लगी है</p><p>अपने हिस्से के आसमान को भुला दिया है </p><p>और दूसरे की फलक को छीनने की होड़ लगी है</p><p>ख़ुद के कर्मों से बहुत कुछ बहुत सुंदर पा लिया है </p><p>लेकिन फिर भी गैर के आगोश में समां जाने की होड़ लगी है </p><p>नजाने क्यों...</p><p><br /></p><p>डॉ त्रिपत मेहता </p>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-31063180649721891512023-10-05T20:48:00.000+05:302023-10-05T20:48:25.352+05:30निरन्तर प्रवाह <p>वो सरिता जो बह निकली है</p><p>विशाल पर्वत का सीना चीर कर</p><p>कल कल करती, जगह जगह कौतुहल करती</p><p>नाचती, गाती, गिरती, संभलती, </p><p>नजाने क्या-क्या शरारतें करती</p><p>कहीं पूरे वेग से हल्ला मचाती हुई</p><p>राह में सब कुछ अपने साथ बहा कर ले जाती हुई</p><p>तो कहीं समुंद्र की गहराई की तरह एकदम शान्त</p><p>जन मानस की प्यास को बुझाती हुई</p><p>अपने अलग-अलग रूप को खुद स्वीकारती हुई</p><p>राह में आने वाली सारी बाधाओं स्वयं ही दूर करती हुई</p><p>बहती चली जा रही है</p><p>बिना किसी की परवाह किए</p><p>बिना किसी की राह देखे</p><p>बस अपनी धुन में</p><p>अपना गीत गुनगुनाते हुए</p><p>चलती चली जा रही है</p><p>बिना रुके, बिना डरे, बिना थके</p><p>अपने पी से मिलने</p><p>सदा सर्वदा के लिए</p><p>उसके साथ एक होने </p><p>क्योंकि मिलन का आनंद तो सर्वोपरी है </p><p>केवल तटिनी ही महसूस कर सकती है</p><p>मिलन के उस क्षण में जन्मे</p><p>आमोद को, तृप्ति को, संपूर्णता के भाव को</p><p><br /></p><p>डॉ त्रिपत मेहता </p>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-10841391456941010682023-10-03T11:13:00.000+05:302023-10-03T11:13:03.677+05:30निजी फैसला <p> सातों जहान क़दमों में होते हैं </p><p>उस पल, जब हम तुम संग होते हैं </p><p> बंधन में चाहे हमें संसार ने बाँधा हो </p><p>लेकिन एक दूसरे के सांचे में ढल कर, </p><p>थोड़ा गिर कर, कुछ संभल कर </p><p>एक दूसरे का ना केवल हमसफ़र </p><p>बल्कि, हमकदम, हमजोली, हमसाया बनकर </p><p>हाथों में हाथ डाल , साथ जीवन व्यतीत करने </p><p>का निश्चय और वादा तो हमारा अपना है </p><p><br /></p><p>- डॉ त्रिपत मेहता </p><p><br /></p><p><br /></p>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-42962223309972258392023-10-03T11:05:00.000+05:302023-10-03T11:05:23.622+05:30 नौंक झोंक <p>वो तुम ही हो न जो </p><p>बात बात पर मुझसे लड़ते हो </p><p>और फिर मुझे गलत ठहराकर </p><p>खुद ही क्षमा भी मांग लेते हो। </p><p><br /></p><p> वो तुम ही हो न जो </p><p>मेरी छोटी-छोटी शरारतों का मज़ा भी लेते हो </p><p>और फिर उतनी ही जल्दी </p><p>चिढ़ भी जाते हो। </p><p><br /></p><p> वो तुम ही हो न जो</p><p>जो बात-बात पर असहमति दिखाते हो </p><p>और फिर अंत में मेरी ही बात को </p><p>मान भी लेते हो। </p><p><br /></p><p> वो तुम ही हो न जो</p><p>जो मेरे, तुम्हें बार-बार फ़ोन करने पर भड़क जाते हो </p><p>और फिर फूलों का गुलदस्ता देकर </p><p>प्रेम से मना भी लेते हो। </p><p><br /></p><p> वो तुम ही हो न जो</p><p>जो मुझे आराम देने के लिए स्वादिष्ट पकवान पकाते हो </p><p>और फिर रसोईघर में मचाए गंद को साफ़ करने के लिए </p><p> मुझे ही बुलाते हो। </p><p><br /></p><p> वो तुम ही हो न जो</p><p>जो मुझे तंग करने के लिए कोई मौका नहीं छोड़ते हो </p><p>और फिर खुद ही भले बनकर </p><p>मान मनुहार भी कर लेते हो। </p><p><br /></p><p> वो तुम ही हो न जो</p><p>जो मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हो </p><p>और फिर मेरी सुरक्षा के लिए </p><p>चिंतित भी रहते हो। </p><p><br /></p><p> वो तुम ही हो न जो</p><p>मेरे किसी गंभीर कथन पर अचानक से ठहाका लगा देते हो </p><p>और फिर उतनी ही परिपक़्वता से </p><p>मामले को सुलझा भी देते हो। </p><p><br /></p><p> वो तुम ही हो न जो</p><p>जो कभी कभी मुझसे खफा हो जाते हो </p><p>और फिर मेरे थोड़ा सा मनाने पर </p><p>झट से मान भी जाते हो। </p><p><br /></p><p> हाँ प्रियवर वो तुम ही हो जो</p><p> मेरे हम कदम हो </p><p>आदि से अनंत काल तक </p><p>सदा सर्वदा से मुझमें हो </p>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-21812658661631596652023-09-21T12:20:00.000+05:302023-09-21T12:20:06.911+05:30 फ़र्ज़ी रिश्ते <p>शुक्रिया हर उस शख़्स का </p><p>जिसने पुरज़ोर कोशिश की </p><p>मेरी हिम्मत तोड़ने की </p><p>मुझे पीछे खींचकर गिराने की </p><p><br /></p><p>सच अगर उस दिन तुम न होते </p><p>तो आज मैं यहाँ ना होती </p><p>अपने सपने को साक्षात् ना जी पा रही होती </p><p><br /></p><p>तुम तो किसी फ़रिश्ते से काम न निकले </p><p>तुमने तो मुझसे "मैं " को मिलवा दिया </p><p>चाहा तो था तुमने मेरे पँखों को काटना </p><p>लेकिन मेरे ख़ुदा को ये गवारा न था </p><p>तुम्हारे हाथों में तलवार की बजाए </p><p>मेरे लिए ऊपर उठने की सीढ़ी दे दी </p><p>जिसकी तुम्हें भी शायद खबर न थी </p><p>और मैं कदम दर कदम </p><p>सीढ़ी दर सीढ़ी </p><p>चढ़ती चली गई </p><p>और अपने स्वाभिमान की </p><p>आन बान और शान को पहचानती गई </p><p><br /></p><p>तू है क्या तू है क्या </p><p><br /></p><p>तुम्हारे मुख से निकली इस ध्वनि ने </p><p>मानो मुझे नींद से जगा दिया </p><p>और सच में याद दिला दिया </p><p>कि आख़िर मैं हूँ क्या </p><p><br /></p><p> सच नमन तुम्हें दिल से </p><p>तुम्हारी चरपरी ज़ुबाँ की बदौलत </p><p>आज वो पा लिया और जी लिया </p><p>जिसकी सदा से केवल कल्पना की थी </p><p>जिसकी सदा से केवल तमन्ना की थी </p><p><br /></p><p>दिल से आभार, अभिनन्दन, अभिवादन तुम्हारा </p><p>मोती जो छिपा था सीप में गहरे कहीं </p><p>तुमने न केवल उसे बहार निकला </p><p>बल्कि चमका भी दिया </p><p><br /></p><p>बहुत बहुत मेहरबानी तुम्हारी </p><p>जो कुटिल हुई वाणी तुम्हारी </p><p>तुम्हारे इसी छल ने मेरे अंदर </p><p>उस ऊंघाई सी चिंगारी को सुलगा दिया </p><p>और भयंकर बवंडर में बदल दिया </p><p><br /></p><p>अन्जाने में ही सही </p><p>माँ शारदे के आशिर्वाद से </p><p>मेरा अंतर्मन झंझोड़ दिया </p><p>मेरी कलम को सक्रिय कर दिया </p><p>मुझे मेरे ध्येय से मिलवा दिया </p><p><br /></p><p>प्रणिपात प्रणिपात प्रणिपात </p><p><br /></p><p>डॉ त्रिपत मेहता </p>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-25769343351367767002023-09-21T12:19:00.002+05:302023-09-21T12:19:42.560+05:30ग़ज़ल <p>हाँ मैंने देखा है </p><p>मदमस्त रौशनी की एक सूक्ष्म सी किरण को </p><p>हर ओर फैले स्याह अन्धकार को मिटाते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p>हाँ मैंने देखा है </p><p>सदियों से बंदिशों की क़ैद से छूटे हुए उस पंछी को </p><p>विशाल अनंत आकाश में पंख फैलाये उड़ते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p>हाँ मैंने देखा है </p><p>उपवन में खिलखिलाते रंग बिरंगे पुष्पों को </p><p>बंजर ज़मीन का सीना चीर कर अस्तित्व में आते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p>हाँ मैंने देखा है </p><p>सुकून और स्नेह की सुन्दर मशाल से फैले उजाले को </p><p>संताप, दुःख और वेदना की कालिमा को मिटाते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p>हाँ मैंने देखा है </p><p>स्वयं के साथ हुए हर उस अपमान और तिरस्कार को </p><p>परमात्मा के नेक-दिली से आशीर्वाद में बदलते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p>हाँ मैंने देखा है </p><p>पहाड़ों से शोरगुल करती कौतुहल करती सरिता को </p><p>अनगिनत पाषाणशिलाओं में विशाल कटाव करते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p>हाँ मैंने देखा है </p><p>मेरे बच्चे के चेहरे पर नाचती हुई उस अनमोल ख़ुशी को </p><p>मुझे आगे बढ़ता, बनता, संवारता और तरक़्क़ी कर देखते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p>हाँ मैंने देखा है </p><p>मेरे हमसफ़र की नज़रों में नितप्रति मेरे लिए बढ़ते सम्मान को </p><p>मुझे अपना सपना अपनी शर्तों पर जीता देखते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p>हाँ मैंने देखा है </p><p>मेरे कोमल हृदयी, अविकारी, निर्वैर मुर्शिद की रहमतों को </p><p>जन मानस का मुकद्दर संवारते हुए उनका कल्याण करते हुए </p><p>मैंने देखा है </p><p><br /></p><p><br /></p><p>डॉ त्रिपत मेहता </p><p><br /></p>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-42408423749130850552023-09-15T13:20:00.000+05:302023-09-15T13:20:19.912+05:30क्या मैं आज़ाद हूँ व्यथित हूँ , व्याकुल हूँ मैं <div>कहीं गहरे अंतस में सुलग़ रहे </div><div>बवंडर में लुप्त हूँ मैं </div><div><br /></div><div>जाने कैसी जवाबदेही के बेड़ियों में </div><div>कैदियों की तरह जकड़ी हुई हूँ मैं </div><div><br /></div><div>जाने कैसा अविज्ञात बोझ अपने सीने पर </div><div>हाँकती हुई, बस मूक बैठी हूँ मैं </div><div><br /></div><div>जाने क्यों अपनी अनगिनत अपेक्षाओं का नितप्रति </div><div>प्रमुदित हो, कण्ठ घोंट रही हूँ मैं </div><div><br /></div><div>नजाने कब तक ऐसा ही चलेगा ये सिलसिला </div><div><br /></div><div>अपने अन्तर्मन में उठ रही इच्छाओं , अभिलाषाओं , प्रेरणाओं को </div><div>जाने कब तक पंख न दे पाऊँगी मैं </div><div>जाने कब तक खुल के ना जी पाऊँगी मैं </div><div>जाने कब तक न उड़ पाऊँगी मैं </div><div><br /></div><div>या फिर कहीं ऐसा तो नहीं </div><div><br /></div><div>ये बेड़ियाँ , या बंदिशें, ये क़ैद </div><div>मैंने स्वयं ही चुनी हों , खुद के लिए </div><div>शायद मैंने ही "मैं " को "मैं " से जकड़ रखा हो </div><div><br /></div><div>और यदि ये सच है तो </div><div><br /></div><div>इस बेनाम, बेमतलब, बन्धन से, इस भार से </div><div>मुझे स्वयं को मुक्त करना होगा </div><div>मुझे स्वयं ही अपने पंखों से उड़ना सीखना होगा </div><div>मुझे स्वयं ही "मैं" को "मैं" की जकड़न से आज़ाद करना होगा </div><div>मुझे स्वयं ही, अपनी ही बनाए कारागृह को </div><div>अग्नि के सुपुर्द करना होगा </div><div><br /></div><div>खुद से वचबद्ध होना होगा </div><div>की अब न कोई बंधन, न बाधा , न बेड़िया मेरे लिए हैं </div><div>अब यदि कुछ है तो </div><div>नीले गगन में उड़ती हुई आज़ाद सिर्फ "मैं" </div><div>मेरा अस्तित्व और मेरा स्वाभिमान है </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>- डॉ त्रिपत मेहता </div>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-22900735169093370832023-09-12T12:05:00.001+05:302023-09-12T12:05:09.530+05:30विरासत<p>ना कुछ मेरा है, ना कुछ तेरा है</p><p>बस जो है, वो यहीं से लिया है</p><p>और यहीं पर देना है</p><p>तो फिर किस बात का अभिमान है, झूठी शान है और नकली इंसान है</p><p>भौतिक सुखों की अभिलाषा से क्या होगा</p><p>होना तो वही है जो माथे पे लिखा होगा</p><p>तू कर्म भूमि के पथ पर</p><p>कर्म करता चल निरन्तर</p><p>तू ठहर मत, तू रुक मत, तू झुक मत, तू थक मत, तू डर मत, तू सोच मत</p><p>तू अपने मार्ग पर उद्दंड चलता चल</p><p>कल क्या होगा, ये तू कल पर छोड़ दे</p><p>तू तो बस आज का गीत गुनगुनाता चल</p><p>और यदि कुछ संचय करना ही है </p><p>तो ऐसी जागीर का कर</p><p>जो अनमोल है, अविकारी है, अमर है</p><p>जो मर कर भी साथ जानी है</p><p>और जो सदा सर्वदा साथ रहनी है</p><p>वो वही है</p><p>जो पार्वती का शिव है</p><p>जो मीरा का कृष्ण है</p><p>जो लक्ष्मी का गणेश है</p><p>जो सीता का राम है</p><p>और जो राधा का श्याम है</p><p>वही तो हमारा भी असली धाम है</p><p>तो क्यों न आज से अभी से </p><p>कुछ ऐसा कायदा कायम करें</p><p>की अबकी बार जो जाएं</p><p>तो फिर बहुरी वापिस ना आएं </p><p><br /></p><p>डॉ त्रिपत मेहता</p>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-65791046545630636722023-08-22T11:31:00.001+05:302023-08-22T11:31:49.431+05:30फ़िल्हाल जी ले ना ना तुम मत रोको <div>खुद को उड़ने से</div><div>ज़ंजीरो को तोड़ने से </div><div>उड़ने दो खुद को, फ़ैला दो अपने पाँखो को </div><div>ये मत सोचो की दुनिया क्या कहेगी </div><div>दुनिया को अपना काम करने दो </div><div>तुम अपना काम करो </div><div>मत डालो भार अपने पंखों पर </div><div>जी भर के उड़ान भरने दो इन्हें </div><div>छू लेने दो इन्हें </div><div>अपने हिस्से के आसमान को </div><div>तुम तो बस उड़ो </div><div>जितना चाहे उतना ऊँचा उड़ो </div><div>खुल के जी लो</div><div>बटोर लो सारी खुशियाँ </div><div>और बाँट दो अपने आस - पास </div><div>हाँ तुम हो, तुम ही तो हो जो </div><div>जो अपनी कहानी खुद लिखोगे </div><div>अपनी ज़िन्दगी के पन्नों को कोरा मत छोड़ो </div><div>अपने मन के धरातल पर </div><div>उभर रहे चित्र को </div><div>तुम ही सजाओगे </div><div>अपनी किस्मत के किरमिच पर </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div style="text-align: right;">डॉ त्रिपत मेहता </div><div><br /></div>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-37820645243998767312017-05-13T21:14:00.003+05:302017-05-13T21:14:59.678+05:30सिसकते रिश्ते <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
काश की ऐसा हो पाता<br />
कि शाखों से टूटे पत्ते<br />
फिर से उन्ही टहनियों पर<br />
लहरा पाते<br />
काश की ऐसा होता<br />
कि टूटे हुए तारे<br />
फिर से विशाल आकाश में<br />
जगमगा पाते<br />
काश की ऐसा होता<br />
कि रिश्तों के टूटे हुए तार<br />
फिर से अपने सांचे में ढल पाते<br />
खिलखिला पाते<br />
काश....<br />
मगर ये हो न पाएगा<br />
वक़्त का पहिया तो चलता ही<br />
चला जाएगा<br />
और अच्छा है की न हो पाएगा<br />
गुजरते समय के साथ<br />
अहसास भी गुजर गए<br />
ज़िन्दगी के रंगमंच पर<br />
आज एक नया किरदार उभर कर आया है<br />
जो <b>बेफिक्र</b> है , जो<b> ताज़ा</b> है<br />
जो <b>हिम्मती</b> है, जो <b>निडर</b> है<br />
जो <b>ताक़तवर</b> है, जो <b>दमदार</b> है<br />
जो <b>अति सुन्दर</b> है , जो <b>तृप्त</b> है... </div>
Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-25926588894665773802016-01-26T11:44:00.000+05:302016-01-26T11:44:19.514+05:30दासी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
तेरे चरणों की दासी हूँ<br />
करो कृपा हे प्रभू<br />
तेरे दरस की प्यासी हूँ<br />
<br />
"मैं" ना रहा अब कुछ नहीं शेष<br />
तेरी कृपा से प्रभू<br />
दासी ने पाया गुरु नरेश<br />
<br />
राम नाम ही अौषध है<br />
तेरा सुमीरन हे प्रभू<br />
अात्मा का पोषण है<br />
<br />
वाटिका का तू सुन्दर फूल<br />
तेरा हर अादेश प्रभू<br />
सर आँख पर है क़ुबूल<br />
<br />
नाम ख़ुमारी चढ़े दिन रैन<br />
प्रभू तेरे दर्शन को<br />
तरसे मेरे दोनों नैन<br />
<br />
राम रस से सदा रहूँ लिप्त<br />
कृपािनधान प्रभू<br />
यही चाहे दासी तृप्त </div>
Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-52462743256487431272015-11-19T22:30:00.001+05:302015-11-19T22:34:41.988+05:30 पिया मिलन का चाव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<br />
<br />
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मोको पिया मिलन का चाव </div>
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मैं बलिहारी राम की </div>
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मैं बलिहारी राम की</div>
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मेरा दरद न जाने कोऊ </div>
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मोको पिया मिलन चाव </div>
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मेरा सतगुरु प्यारा </div>
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मेरा सतगुरु न्यारा </div>
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<br /></div>
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पीहू पीहू बोल्या पपीहा </div>
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पीहू पीहू बोल्या पपीहा </div>
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नईया पार लगाओ </div>
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मोको पिया मिलन चाव </div>
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मेरा सतगुरु प्यारा </div>
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मेरा सतगुरु न्यारा </div>
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<br /></div>
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कामिनी खसम को चाहे </div>
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कामिनी खसम को चाहे </div>
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बूँद बूँद अमृत बरसाओ </div>
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मोको पिया मिलन चाव </div>
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मेरा सतगुरु प्यारा </div>
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मेरा सतगुरु न्यारा </div>
</div>
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<br /></div>
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तन मन धन तुझको बेचेया </div>
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तन मन धन तुझको बेचेया </div>
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मन अब त्रिपत भया </div>
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मोको पिया मिलन चाव </div>
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मेरा सतगुरु प्यारा </div>
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मेरा सतगुरु न्यारा </div>
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Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-21932116106302050652013-03-06T13:09:00.002+05:302013-03-06T13:09:16.190+05:30अरमाँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
खुश हुआ है बहुत अंतर्मन<br />
पर कहीं गहरे अंतस में<br />
तीव्र उदासी भी है<br />
नाच उठा है तन बदन<br />
पर कही ख्वाबों की गली में<br />
अखंड ठेहराव भी है<br />
आशाओं से भर गया है मन<br />
पर कहीं किसी धमनी में<br />
अजीब सा खालीपन भी है<br />
भानू की रोशनी से भरपूर है गगन<br />
पर कहीं किसी कोने में<br />
स्याह अँधेरा भी है<br />
वर्षा की बूंदों से धरा है मगन<br />
पर कही किसी कूचे में<br />
बंजर सूखापन भी है<br />
खुशियों ने थाम लिया है दामन<br />
पर कहीं किसी रिश्ते में<br />
नासूर गम के बादल भी हैं<br />
शायद इसी का नाम ज़िन्दगी है<br />
हा इसी का नाम ज़िन्दगी है<br />
<br />
<br /></div>
Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-50022823115606151422010-10-02T19:34:00.000+05:302010-10-02T19:34:31.615+05:30अनुभूतिआज अचानक<br />
कहीं गहरे अंतस में<br />
उसी मंदिर कि घंटियाँ फिर से बजने लगी हैं<br />
और आरती सुनाई देने लगी है <br />
<br />
जब मैं और मेरी सहेलियाँ<br />
छुट्टी वाले दिन<br />
बड़े ही चाव से बन-ठन के<br />
मंदिर जाया करती थी<br />
हर शाम घंटी बजने का <br />
इंतज़ार किया करतीं थीं<br />
<br />
सच...<br />
आज़ाद परिंदा था मन उन दिनों<br />
जिसकी उड़ान की<br />
कोई सीमा नहीं थी,<br />
कोई निश्चित दिशा नहीं थी<br />
<br />
बिल्कुल आज़ाद, बंदिशों रहित,<br />
निर्मल, स्वच्छ आकाश में<br />
उड़ान भरने को सदा तत्पर...<br />
खुले-आम जी भर के जीने वाला<br />
चित...<br />
जिसका कही कोई मुकाबला ही नही था...<br />
<br />
लेकिन आज अगर ढूंढने भी निकलूँ,<br />
तो भी नहीं मिलता वो मंदिर<br />
कान मानो तरस रहें हों आरती की आवाज़ को...<br />
<br />
सहेलियों के भी धरौंदे टूटते समय न लगा<br />
और कच से टूट कर बिखर गए<br />
<br />
अब कोई राहगीर नहीं रहा राह में<br />
और मन....<br />
मन जैसे प्रत्येक क्षण<br />
करहा रहा हो...छटपटा रहा हो...<br />
एक बार फिर से उसी गगन को<br />
चूमने को तरस रहा हो...<br />
<br />
मगर अफ़सोस<br />
उडारी भर न सकेगा<br />
इन बंदिशों, बेड़ियों, समाज की खोखली जंजीरों में<br />
बंध कर जो रह गया है<br />
<br />
न जी सकेगा, न मर सकेगा<br />
बस यूँ ही<br />
घुट-घुट कर आहें भर कर रह जाएगा...<br />
<br />
और इंतज़ार करेगा<br />
एक नई प्रभात का<br />
वाटिका में नई कोपलों के फूटने का<br />
एक सुन्दर नवीन संसार का...Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com34tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-56955206994480069172010-08-30T19:30:00.002+05:302010-08-30T19:35:29.251+05:30ग़ज़ल<span style="font-size: small;">तेरे हुस्न के तसव्वुर से रोशने-हयात हो गई </span><br />
<span style="font-size: small;">तेरी बख्शीश हुई, तो ये कायनात बहशत हो गई</span><br />
<span style="font-size: small;">(तसव्वुर - ध्यान, हयात - ज़िन्दगी, </span>बख्शीश - रहमत,<br />
कायनात - सृष्टि, बहशत - स्वर्ग )<br />
<br />
<span style="font-size: small;">चिरागे-ज़ीस्त को तूने दिया है इक सूरज नया,</span><br />
<span style="font-size: small;">तेरे ज़िक्र की कलंदरी में मेरी ज़ात फ़ना हो गई</span><br />
(चिरागे-ज़ीस्त - जीवन रुपी दीया, कलंदरी - मस्ती,<br />
ज़ात - अस्तित्व )<br />
<br />
<span style="font-size: small;">हो बैअत-ऐ-मुर्शिद चली मैं रूहानी राह पर,</span><br />
<span style="font-size: small;">वसूल कर तेरे दीदारे-हक़ को मैं तारक हो गई</span><br />
(बैअत-ऐ-मुर्शिद - गुरु से दीक्षित, दीदारे-हक़ - दर्शन का अधिकार,<br />
तारक - त्यागी )<br />
<br />
<span style="font-size: small;">नफ्स को रौंद दिया आरिफ की पुर-लुत्फी ने,</span><br />
<span style="font-size: small;">मकामे-हक़ की बंदगी ही बस, मेरी ज़िद्द हो गई</span><br />
(नफ्स - मन, आरिफ - अल्लाह का नाम लेने वाला,<br />
पुर-लुत्फी - आनंददायक, मकामे-हक़ - सतलोक )<br />
<br />
<span style="font-size: small;">है तेरी फेज़ से मेरी सबा हसीं,</span><br />
<span style="font-size: small;">रज़ा में तेरी सजदा कर, मैं आलिफ हो गई</span><br />
(फेज़ - कृपा, सबा - प्रभात, रज़ा - मौज,<br />
सजदा - परमात्मा के आगे सर झुकाना, आलिफ - अल्लाह की एकता )<br />
<br />
<span style="font-size: small;">खत्म हो गया समां हुकूमते-आगही का,</span><br />
<span style="font-size: small;">अल्ला-ताल्लाह से विसाल हुआ तो मैं "तृप्त" हो गई</span><br />
(हुकूमते-आगही - बुद्धि का शासन, अल्ला-ताल्लाह - परमात्मा,<br />
विसाल - मिलन, तृप्त - संतुष्ट )Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com28tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-23036421727986325572010-07-27T14:30:00.003+05:302010-07-27T16:14:23.861+05:30दिले-बयाँ<div style="text-align: left;">नैन चक्षुओं को खुलना सिखा मौला,</div><div style="text-align: left;">ज़र्रे-ज़र्रे में तेरे अक्स को देखना सिखा मौला </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">कर्णों से सुनना सिखा मौला,</div><div style="text-align: left;">कौने -कौने में तेरे नाम कि अपार चर्चा सुनना सिखा मौला</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">नथनों से सूंघना सिखा मौला,</div><div style="text-align: left;">सृष्टि के कण-कण में बसी तेरी मदमस्त सुगंधी में डूबना सिखा मौला</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">कंठ को तेरी उस्तत करना सिखा मौला,</div><div style="text-align: left;">हर लफ़्ज में तेरा ज़िक्र हो ऐसा कोई नायाब गीत सिखा मौला</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">हस्त से लिखना सिखा मौला,</div><div style="text-align: left;">कविता के प्रत्येक शब्द में तेरे नाम का गुण-गान करना सिखा मौला</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">उदर कि क्षुदा को तड़पना सिखा मौला,</div><div style="text-align: left;">तेरे ध्यान कि ऊर्जा से भूखे पेट को भरना सिखा मौला</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">क़दमों को चलना सिखा मौला,</div><div style="text-align: left;">सकल द्वार को छोड़ कर तेरे नूरे-द्वार पर रुकना सिखा मौला</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">कामिनी को ख़सम होना सिखा मौला,</div><div style="text-align: left;">जन्म-मरण के चक्रव्यूह से अब तो विश्राम करना सिखा मौला</div>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-58436075312620269372010-06-26T18:28:00.001+05:302010-06-26T18:30:35.773+05:30ग़ज़ल<div class="post-body entry-content" style="color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 1.4; position: relative; width: 506px;">चले आए हैं तेरे दर पे कि<br />
आज जाने कि जल्दी नहीं<br />
<br />
किसी कि नजरों का इंतज़ार बनें कि<br />
आज हमारे घर कोई नहीं<br />
<br />
हैं भटक राहों में दर बदर रहें कि<br />
आज मयखाने में प्यास बुझती नहीं<br />
<br />
हो गया है याराना अन्धकार से कि<br />
आज दिल-ऐ-चिराग ले रोशनी होती नहीं<br />
<br />
अलफ़ाज़ बेकरार हैं होने को नज़म तरस के कि<br />
आज सुरों कि बरसात होती नहीं<br />
<br />
झुलस उठा है अंतर्मन ऐ "तृप्त" कि<br />
आज बरखा भी दामन भिगोती नहीं</div><div class="post-body entry-content" style="color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 1.4; position: relative; width: 506px;"><br />
</div><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: small;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 13px; line-height: 18px;"><br />
</span></span>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com34tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-31667560226442552042010-05-24T19:42:00.000+05:302010-05-24T19:42:53.012+05:30क्या कहूँतुम्हें किस नाम से पुकारूं<br />
तुम्हारी किस किस अदा का क्या क्या नाम रखूँ<br />
<br />
तुम्हें खुशनुमा हवा का केवल एक झोंका कहूँ<br />
या अन्दर तक झंझोड़ देने वाली तीव्र आंधी... <br />
<br />
तुम्हें मेरी आत्मा को "तृप्त" करने वाला शीतल नीर कहूँ<br />
या मेरी देह को अमृत बनाने वाला क्षीर सागर...<br />
<br />
तुम्हारे जीवन में मेरे अस्तित्व को<br />
अपनी खुशनसीबी समझूँ<br />
या तुम्हारी उदारता का एक सूक्ष्म उद्हारण...<br />
<br />
तुम्हें चारों तरफ निस्वार्थ प्रेम की<br />
रंगीन कलियों की महक बिखेरने वाली पवन कहूँ<br />
या खुशबूदार खिलखिलाते फूलों से सजा बागीचा...<br />
<br />
निर्णय नहीं ले पा रहीं हूँ<br />
कि...<br />
<br />
तुम्हें चिलचिलाती गर्मी में<br />
धरा को हरा भरा बनाने वाली वर्षा की पहली बूँद कहूँ<br />
या सावन के नीर बरसाते घनघोर बादल...<br />
<br />
तुम्हें काले अँधेरे के सीने को चीरती हुई रोशनी की किरण कहूँ<br />
या पूनम की रात्री का मदहोश कर देने वाले चाँद की चाँदनी...<br />
<br />
तुम्हें शंख में छिपा मोती कहूँ<br />
या कुबेर की खज़ाना...<br />
<br />
समझ नहीं पा रही हूँ<br />
कि...<br />
<br />
तुम्हें ब्रह्म कि ऊर्जा बिखेरने वाला रथ कहूँ<br />
या स्वयं ब्रह्म...Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com37tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-3456061650101173482010-03-05T15:21:00.000+05:302010-03-05T15:21:40.968+05:30तब्बसुम-ऐ-यारयादों कि डालियों पे<br />
ख़्वाबों ने<br />
जज्बादों के धरौंदों पर<br />
अनगिनत लम्हों का<br />
सुंदर आशिआना बना रखा है<br />
दिल के आँगन में<br />
अरमानो के मनमोहक<br />
खिलखिलाते फूलों से सजी<br />
हसरतों कि डोली में बैठी<br />
उम्मीदों कि नई नवेली दुल्हन<br />
दामन में अनेक आरजुओ को समेटे<br />
सपनो के समंदर में<br />
अनमोल पलों को संजोए<br />
लहरों के साथ<br />
डूबती चली जा रही है<br />
नयनो के सावन से बरसती<br />
रिमझिम बौछार में<br />
चित, मौर सा अठखेलियाँ करता<br />
नजाने किस किस देश में<br />
किस किस डगर पर<br />
मस्ती में पंख बिखेरे<br />
आशाओं कि पगडंडियों पर<br />
नृत्य कर<br />
बड़ी ही शिद्दत से<br />
अरमानों का झूला<br />
झूल रहा है<br />
यादों कि डालियों पे<br />
ख़्वाबों ने...Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com37tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-71485325140467418272010-01-02T14:24:00.001+05:302010-01-02T16:58:13.187+05:30सोहना सजनसर्दियों की मखमली धूप से भी ज्यादा<br />
कोमल है तेरी यादों का स्पर्श<br />
तेरे साथ बीता मेरा हर पल, मादक है<br />
कहतें है मदहोशी की बातें<br />
ज़हन में नहीं रहतीं<br />
मगर तेरे साथ का ये कैसा नशा है<br />
कि<br />
इक इक पल याद बन कर दौड़ रहा है<br />
मेरी देह में लहू के साथ<br />
बहुत बार छलकी ये आँखें<br />
बहुत बार गीली हुई ये पलकें<br />
मगर इतना दम किसी जज्बाद में नहीं था<br />
की ले बहें खुद के साथ<br />
मेरे सोहने यार के सुन्दर एहसास को<br />
एक अजब नशा है, एक गज़ब मजा है<br />
मेरी आँखों में बसी तेरी तस्वीर में<br />
तेरा हर अंदाज़ निराला है<br />
तेरा हर कदम मतवाला है<br />
जब होती हूँ रु-ब-रु तुझसे मेरे ख़्वाबों में<br />
कही न होते हुए भी<br />
तू हर पल मेरे संग है<br />
मेरे ख्यालों के कारवां में बस तू है<br />
जहान में न था, न होगा<br />
मेरे सनम सा सुन्दर कोई<br />
जिसकी आँखों में तेज<br />
चेहरे पर मुस्कान है<br />
बस यही तो मेरे सोहने यार की पहचान हैDr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com41tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-14339892209741679942009-12-28T16:24:00.000+05:302009-12-28T16:24:33.964+05:30प्रशन चिन्ह?<span style="font-size: large;">क्या कारण है की आजादी के बासठ सालों के बाद आज भी भारत वर्ष की गिनती उन्नत देशो में न हों कर उन्नतिशील देशो में की जाती है? क्यों आज भी एक आम आदमी को उसके अधिकारों से जानभूझ कर वंचित रखा जाता है? क्यों एक साधारण व्यक्ति अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल करना ही नहीं चाहता? क्यों कोई अपने अधिकारों के लिए अपनी आवाज़ उठाना ही नहीं चाहता? क्यों आज भी दिन हो या रात, एक लड़की सड़क पर अकेली जाने से कतराती है? क्यों यहाँ के नागरिक खुद को सुरक्षित नहीं समझते? क्यों एक साधारण, मजबूर, गरीब आवाज को सियासत के भौंपू के आवाज के तले, उसे उठने से पहले ही दबा दिया जाता है? आज कहाँ गई उनकी इंसानियत या उनकी जिम्मेवारी जिन्होंने एक सुन्दर, विशाल, उन्नत समाज का निर्माण करने की शपथ ग्रहण की थी? क्यों आज का समाज अपने कर्तव्यों के प्रति अपना उत्तर्दायितव नहीं समझता, या सरल शब्दों में कहूँ की समझना नहीं चाहता? क्यों इस देश का ८०% न्याय भी अन्याय है? क्यों आज रह चलते किसी भी मुसाफिर से चाक़ू की नोंक पर उस से सब कुछ सरेआम छीन लिया जाता है और बदले में प्रशासन और स्वयं समाज हाथों में चूडिया डाल कर सहायता करने की बजाये तमाशा देखते रहेते है? क्यों एक बेक़सूर को कसूरवार न होते हुए भी बड़ी ही निर्ममता से कठौर सजा सुना दी जाती है, और उसे एक बार भी अपनी सफाई पेश करने का मौका नहीं दिया जाता? फिर क्यों हज़ारो किताबें लिख डाली है न्याय की, यदि कोई उसे पड़ना नहीं चाहता, और जो पड़ना चाहता है उसे उसका इस्तेमाल नहीं करने दिया जाता? क्यों दीमक की तरह चिपक गया है ये अपराध देश को और धीरे धीरे खोखला किये जा रहा है इसे? क्यों कोई सचाई की तरफ कदम नहीं बढाना चाहता? क्यों आज अन्याय की इमारत इतनी ऊँची और मजबूत हो गई है की न्याय को वहा पहुँचने से पहले ही दबोच लिया जाता है? मदद, परोपकार, अनुशासन, विश्वास; जैसे शब्दों का तो कोई मूल्य नहीं रह गया है आज. चीथड़े उड़ा दिए गए है इस शब्दों के मायनो के. आज हर गली मोहल्ले में सब्जी तरकारी के भाव बिकतें है लोगो के ज़मीर और ख़ुशी ख़ुशी बिकतें है. सच में पट्टी बंधी है न्याय की मूर्ती पर, और इतनी ज़ोर से बंधी है की यदि कोई इसे खोलना भी चाहे तो हाथ काट दिए जाते है. सच की आवाज को गूंजने से पहले ही उसका गला दबा कर अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. </span><br />
<span style="font-size: large;">कौन करेगा उन्नति, कौन बनाएगा नए और सुन्दर रास्ते, कौन करेगा सहायता; जब रक्षक ही सबसे बड़ा भक्षक बन चुका है?</span>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-23516438093628472232009-12-02T11:24:00.000+05:302009-12-02T11:24:18.839+05:30DreamsWhen the whole world sleeps,<br />
At the midnight air whispers in my ear.<br />
A beautiful ball of white light in the sky,<br />
Throws its charming rays into my eyes.<br />
I usually try to see a glimpse of yours,<br />
Into the mirror or in shadow of mine.<br />
My twin eyes pretend to see you,<br />
I am always blue without you.<br />
I can feel and smell your senses,<br />
As my soul is one with you.<br />
And on all the occasions,<br />
I want to be with you.<br />
<br />
<b>I Love You!</b>Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-54526304486394193552009-10-08T16:40:00.002+05:302009-10-08T16:49:18.710+05:30आरजू<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKW0KRo6Zit2Bd-7rBJv5iDMuh9qjJuza9lPyzqrnokj3VJmTrI50AoeOv8y16XtpXFxFo2yPQ0xedG-Yf3juiQMkl0MooqkYF_y_cInG9oKYzrkGq54lDjQmrnnwFREDCE4GRAkfqjAQ/s1600-h/hope_id20790441_jpg.jpg"><img style="margin: 0pt 0pt 10px 10px; float: right; cursor: pointer; width: 200px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKW0KRo6Zit2Bd-7rBJv5iDMuh9qjJuza9lPyzqrnokj3VJmTrI50AoeOv8y16XtpXFxFo2yPQ0xedG-Yf3juiQMkl0MooqkYF_y_cInG9oKYzrkGq54lDjQmrnnwFREDCE4GRAkfqjAQ/s200/hope_id20790441_jpg.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5390187159219453266" border="0" /></a><br />दिन, महीने, साल<br />यु ही गुजरते चले गए<br />और मैं, देखती रह गई<br />अपने साथ साथ हजारो रंग<br />हजारो सपने बिखेरते रहे<br />और मैं, एक भी सपने का रंग न बटोर पाई<br />वक्त का कठोर पहिया किसी के लिए<br />न कभी रुका था, न कभी रुका है<br />और मैं, समय की रफ़्तार पकड़ने की कोशिश करती रही<br />सावन, बरखा, मेघ, सतरंगी<br />सब आते रहे, जाते रहे<br />और मैं, बुत बनी देखती रही<br />ज़िन्दगी अपने रंगमंच पर जाने कितने<br />किरदार निभाती रही<br />और मैं, ख़ुद के अस्तित्व के धागों को बुनती रही<br />सफर तो जहा से शुरू किया था<br />आज वही आकर ख़तम हो गया<br />और मैं, मंजिल का ठिकाना ढूँढती रही...Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-78034482819484888792009-08-27T12:16:00.002+05:302009-08-27T12:24:47.517+05:30दृष्टिकोणबड़े सुहाने दिन थे वो जब ज़िन्दगी<br />सिर्फ़ मेरे लिए, किसी हसीन अफ़साने से कम न थी<br />जब उगते हुए सूरज की हर किरण<br />सिर्फ़ मेरे लिए, अपने साथ हजारों रंग लिए आती थी<br />जब पड़ोस में मुर्गा सुबह सुबह<br />सिर्फ़ मेरे लिए, जोर से बांग देता था<br />जब बागीचे का फूल फूल<br />सिर्फ़ मेरे लिए, खुशबू बिखेरा करता था<br />जब गर्मी की तेज धुप को चीरते हुए बादल<br />सिर्फ़ मेरे लिए, जी भर कर बरसते थे<br />जब खुले निर्मल आकाश में इन्द्रधनुष<br />सिर्फ़ मेरे लिए, रंगों की बौछार करता था<br />जब गली में खेलते हुए बच्चों में से मेरी <span style="font-weight: bold;">माँ</span><br />सिर्फ़ मेरे ही चेहरे पर, खुशी को नाचते हुए देखा करती थी<br />सच...ये कायनात अज़ब सुंदर थी<br />जब मैं बच्ची थी...Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3738571871159345312.post-87227822177936017432009-08-05T10:45:00.003+05:302009-08-05T10:54:28.131+05:30वही डगर...आज क्यों बदली बदली सी है<br />वही राहे...<br />जो कभी अपनी हुआ करती थी<br />लगाव तो आज भी उतना ही है<br />फिर क्यों अपनी हो कर भी डगर अनजानी सी लगती है<br />आज वही मेघ छाए है गगन में<br />फिर क्यों बरखा का पानी बेगाना सा लगता है<br />वही मौसम, वही रुत, वही आलम है<br />फिर क्यों आज सच भी अफसाना सा लगता है<br />खुशिया आज भी बाहे फैलाए स्वागत कर रही है<br />फिर क्यों इक अनजाना सा भय खाए चला जा रहा है<br />या कुछ नही...ये डगर है <span style="font-weight: bold;">उस</span> तक पहुँचने की<br />शायद इसी लिए राह की हर सीडी परीक्षा बनती चली जा रही है...Dr. Tripat Mehtahttp://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.com7