पुरूष और नारी मिलकर समाज की रचना करते है। समाज के निर्माण के लिए जितना पुरूष जिम्मेवार है उतनी ही नारी भी। फिर क्यों सदियों से नारी अपने अरमानो को सूली से टंगती हुई आ रही है, क्यों सदा से ही नारी को तुच्छ समझा जाता है। प्रकृति ने भी नारी को पुरूष से एक कदम आगे रखा है...संतान पैदा करने का सामर्थ्य प्रदान किया है। आज विधान सभा में नारी को ३३% आरक्षण देने की बात करते है, आख़िर क्या साबित करना चाहते है, की ये नारी का सम्मान कर रहे है, उसे आगे आने का मोका दे रहे है। अरे ईश्वर ने भी सृष्टि की रचना के लिए नारी और पुरूष का ५०% चुना है...फिर क्यों ये पुरूष प्रधान समाज नारी को उसका ५०% अधिकार नही दे सकता?
मगर ये क्या जाने नारी की मनो - स्तिथि को। हर रोज , हर कदम पर जाने किस - किस चुनौती का सामना करती है। दिन रात इक नई कसौटी पर मुस्कुराते हुई तराजू में तौलती है ख़ुद को। नारी के जीवन पर चार लफ्ज़ लिख डाले और समझ लिया की जान गए इसे अच्छी तरह..इसी भ्रम में है वो लोग , जो ये दावा करते है की वो इसकी तकलीफ से रु-ब-रु है। इतना आसान नही है नारी के अस्तित्व को जानना और समझना। यदि नारी को समझना है, उसे सही शब्दों में पिरोना है, तो ख़ुद नारी का जीवन जी कर देखो। (बहुत आसान है लिखना- की नारी जीवन में बहुत से किरदार निभाती है और सफल भी होती है)। नारी की सहेनशीलता को शब्द नही दिए जा सकते। ईश्वर ने जाने किस मिटटी से बनाया है इसे, की हर तूफ़ान को इक नई चुनौती समझ कर , उसे जान कर, उसे स्वीकार कर, चुपचाप अपने अन्दर समेट लेती है। कोई क्या जाने की ये अन्दर से कितनी डरी हुई होगी...कभी किसी ने भी इसकी मनो-स्तिथि को समझने की कोशिश ही नही की। यदि वास्तव में कोई इसे समझना चाहता तो इस पर भिन्न - भिन्न प्रकार ki कविताए लिखने की बजाए इसके अस्तित्व की रक्षा करने में जुटा हुआ दिखाई देता। अफ़सोस सिर्फ़ और सिर्फ़ इसी बात का है की इस पर दया का भाव दिखाने वाले तो करोडो मिल जाते है, लेकिन इसके लिए, इसके अधिकार के लिए कोई भी आगे आने को तैयार नही है॥
स्वार्थी है आज का समाज। यह पुरूष प्रधान समाज एक औरत को कभी भी उन्नति करता हुआ नही देख सकता। आज देश में कितनी है ऐसी प्रतिभाशाली औरतें है जो लोक लाज के भय से अपने अपने घरों में छुपी बैठी है।
समाज लोगो से बनता है - हम तुम जैसे लोगो से...लेकिन आज लोगो की सोच बेईमानी हो गई है। बेईमान लोगो से बना हुआ आज का समाज खोखला हो चुका है। एक ऐसा समाज जिसके तत्व न तो स्वयम ही उन्नति करना चाहते है और न दूसरो को करते देख सकतें है।
स्वर्गवासी श्री आंबेडकर जी ने सही कहा है - "भारत भाग्य विधाता"। भारत का भाग्य उस विधाता के हाथों में ही है..लेकिन इश्वर भी उसी की सहायता करते है जो स्वयं अपनी सहयता करना चाहता है ..और यहाँ तो सहायता करने की बजाए एक दूसरे के अस्तित्व को जी जान से मिटाने में लगे है...
Friday, July 10, 2009
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नजाने क्यों
नजाने क्यों, सब को सब कुछ पाने की होड़ लगी है नजाने क्यों, सब को सबसे आगे निकलने की होड़ लगी है जो मिल गया है, उसको अनदेखा कर दिया है और जो...
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