अपने ही विचारों की दल दल में
कहीं गुम सी होती चली जा रही हूँ मैं
डर है कहीं ख़ुद के ही अस्तित्व को
न खो बैठूं मैं
पता नहीं ये डगर किस ओर ले जा रही है
या ख़ुद इसी राह से लिपटी चली जा रही हूँ मैं
है मंजिल कहाँ , कहाँ ठिकाना है, कुछ ख़बर नही
बस
सूखे पत्ते की तरह हवा में बहती चली जा रही हूँ मैं
मलिन हो गया है अंतर्मन या नही सुनाई देती आत्मा की आवाज़
आज उज्जवल दृश्य नही देख पा रही हूँ मैं
मन के पर्दे पर अठखेलियाँ करते भिन्न भिन्न रंगों में से
सफ़ेद रंग को पा लेने की आरजू करती चली जा रही हूँ मैं
ये कैसी दुविधा है, कैसा फ़साना है
की लोग कहतें है
आंखों से ही सब बयान करे जा रही हूँ मैं
Saturday, May 30, 2009
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नजाने क्यों
नजाने क्यों, सब को सब कुछ पाने की होड़ लगी है नजाने क्यों, सब को सबसे आगे निकलने की होड़ लगी है जो मिल गया है, उसको अनदेखा कर दिया है और जो...
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13 comments:
hmm duwida to hai....yeh kare ya woh kare aisa kare ya waisa kare....chooti si zindgee me akhir kya kya kare....khubsurat racna....
waah waah .........shandar, nari man ke bhavon ko bakhoobi darshaya hai.
bahut baDhiya hai jee!
सफ़ेद रंग पाक और साफ होता है फिर दुविधा कैसी ....?? दलदल में घुसेगीं तो कई और रंग लगते चले जायेगे .....पर आपने मन के भावों को जिस सत्यता से पिरोया ...नमनीय है ....!!
sabse zyada jis baat ne prabhavit kiya wo hai aapke shabdo ka chayan...
bahut achchha laga.
बहुत सुन्दर। लिखती रहिए।
सफ़ेद रंग को पा लेने की आरजू करती चली जा रही हूँ मैं
ये कैसी दुविधा है, कैसा फ़साना है
ak achi bhavavykti.
I read many of ur earlier compositions..u are really good...aajkal likhne ki freqency zara kam kar di hai aapne??...
keep wriitng..keep sharing
bahut sundar mitr;
aapki bahut si kavitayen padhi ..
is kavita ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya ..
behatreen lekhan . yun hi likhte rahe ...
badhai ...
dhanywad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
है मंजिल कहाँ , कहाँ ठिकाना है, कुछ ख़बर नही
बस
सूखे पत्ते की तरह हवा में बहती चली जा रही हूँ मैं
... bahut khoob, prabhaavashaali abhivyakti !!!!
bahut khoob...bahut achha likha hai aapne
do din ki zindgai me kitne khalal pade......amarjeet kaunke
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