Thursday, April 30, 2009

किस और...किसकी तरफ़....और क्यों ???

आज एक बार फ़िर से
वही दौर आया है...
वो फ़िर से हर गली मुहल्ले में
अपनी आवाज़ घर घर बिखेरते
नज़र आने लगे...
फ़िर से वही नकली, झूठी
दिल को दिलासा देने वाली दलीलें
शहर के हर मोड़ पर सुनाई देने लगी....
दलील है..वोट दो...
उसे नही...मुझे दो...
सोच में पढ़ गई हू
किसे दू और किसे नही....
कौन साचा है कौन झूठा...
कौन देश की उन्नति के लिए सहभागी है
और कौन नही...
अपने ही विचारों में उलझ सी गई हू...
इस जन्तो जेहेन में फंस गई हू
न ख़ुद के साथ और न ही
समाज के साथ
न्याय नही कर पा रही हू
वो कहतें है आपका वोट कीमती है...
पर सबको पता है
परदे के पीछे यही वोट बिकता है...
आम आदमी को कौन पूछता है
उन्हें तो सिंघासन चाहिए
और उन्हें मिल भी जाएगा...
आम आदमी से ही खरीदा हुआ
झूठे दिलासे दे कर
सिंघासन....
हैरान हू
की हम सच में अभी तक
आजादी के बासठ सालों के बाद भी
आँखें खोल कर सो रहे है....
या कभी जागना चाहते ही नही...

5 comments:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

voter agar jaag gayaa to aadmi jaag jaayega...aur aadmi agar jaag gayaa to...bhaarat se raajneta hi vidaa ho jaayenge....!!

डिम्पल मल्होत्रा said...

sahi baat hai hum ankhe khol ke hi sote hai...kuchh dekhna nahi chate.....

Sanjay Grover said...

आँखें खोल कर सो रहे है....
या कभी जागना चाहते ही नही...
ye donoN panktiyaN achchhi lagi.
jeeti rahiye. jagti rahiye. likhti rahiye.

Dr. Tripat Mehta said...

aapke amoolya wichaaroon ka hamesha mere blog par swagat rahega...
shukriya

हरकीरत ' हीर' said...

आँखें खोल कर सो रहे है....
या कभी जागना चाहते ही नही...

सामयिक रचना....!!
सही लफ्जों में सच्चाई बयाँ करती पंक्तियाँ ......!!

[ye word verification hta den ]

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