Thursday, August 27, 2009

दृष्टिकोण

बड़े सुहाने दिन थे वो जब ज़िन्दगी
सिर्फ़ मेरे लिए, किसी हसीन अफ़साने से कम न थी
जब उगते हुए सूरज की हर किरण
सिर्फ़ मेरे लिए, अपने साथ हजारों रंग लिए आती थी
जब पड़ोस में मुर्गा सुबह सुबह
सिर्फ़ मेरे लिए, जोर से बांग देता था
जब बागीचे का फूल फूल
सिर्फ़ मेरे लिए, खुशबू बिखेरा करता था
जब गर्मी की तेज धुप को चीरते हुए बादल
सिर्फ़ मेरे लिए, जी भर कर बरसते थे
जब खुले निर्मल आकाश में इन्द्रधनुष
सिर्फ़ मेरे लिए, रंगों की बौछार करता था
जब गली में खेलते हुए बच्चों में से मेरी माँ
सिर्फ़ मेरे ही चेहरे पर, खुशी को नाचते हुए देखा करती थी
सच...ये कायनात अज़ब सुंदर थी
जब मैं बच्ची थी...

Wednesday, August 5, 2009

वही डगर...

आज क्यों बदली बदली सी है
वही राहे...
जो कभी अपनी हुआ करती थी
लगाव तो आज भी उतना ही है
फिर क्यों अपनी हो कर भी डगर अनजानी सी लगती है
आज वही मेघ छाए है गगन में
फिर क्यों बरखा का पानी बेगाना सा लगता है
वही मौसम, वही रुत, वही आलम है
फिर क्यों आज सच भी अफसाना सा लगता है
खुशिया आज भी बाहे फैलाए स्वागत कर रही है
फिर क्यों इक अनजाना सा भय खाए चला जा रहा है
या कुछ नही...ये डगर है उस तक पहुँचने की
शायद इसी लिए राह की हर सीडी परीक्षा बनती चली जा रही है...

नजाने क्यों

 नजाने क्यों, सब को सब कुछ पाने की होड़ लगी है नजाने क्यों, सब को सबसे आगे निकलने की होड़ लगी है जो मिल गया है, उसको अनदेखा कर दिया है और जो...