खुद को उड़ने से
ज़ंजीरो को तोड़ने से
उड़ने दो खुद को, फ़ैला दो अपने पाँखो को
ये मत सोचो की दुनिया क्या कहेगी
दुनिया को अपना काम करने दो
तुम अपना काम करो
मत डालो भार अपने पंखों पर
जी भर के उड़ान भरने दो इन्हें
छू लेने दो इन्हें
अपने हिस्से के आसमान को
तुम तो बस उड़ो
जितना चाहे उतना ऊँचा उड़ो
खुल के जी लो
बटोर लो सारी खुशियाँ
और बाँट दो अपने आस - पास
हाँ तुम हो, तुम ही तो हो जो
जो अपनी कहानी खुद लिखोगे
अपनी ज़िन्दगी के पन्नों को कोरा मत छोड़ो
अपने मन के धरातल पर
उभर रहे चित्र को
तुम ही सजाओगे
अपनी किस्मत के किरमिच पर
डॉ त्रिपत मेहता
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