ना कुछ मेरा है, ना कुछ तेरा है
बस जो है, वो यहीं से लिया है
और यहीं पर देना है
तो फिर किस बात का अभिमान है, झूठी शान है और नकली इंसान है
भौतिक सुखों की अभिलाषा से क्या होगा
होना तो वही है जो माथे पे लिखा होगा
तू कर्म भूमि के पथ पर
कर्म करता चल निरन्तर
तू ठहर मत, तू रुक मत, तू झुक मत, तू थक मत, तू डर मत, तू सोच मत
तू अपने मार्ग पर उद्दंड चलता चल
कल क्या होगा, ये तू कल पर छोड़ दे
तू तो बस आज का गीत गुनगुनाता चल
और यदि कुछ संचय करना ही है
तो ऐसी जागीर का कर
जो अनमोल है, अविकारी है, अमर है
जो मर कर भी साथ जानी है
और जो सदा सर्वदा साथ रहनी है
वो वही है
जो पार्वती का शिव है
जो मीरा का कृष्ण है
जो लक्ष्मी का गणेश है
जो सीता का राम है
और जो राधा का श्याम है
वही तो हमारा भी असली धाम है
तो क्यों न आज से अभी से
कुछ ऐसा कायदा कायम करें
की अबकी बार जो जाएं
तो फिर बहुरी वापिस ना आएं
डॉ त्रिपत मेहता
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