Thursday, September 21, 2023

ग़ज़ल

हाँ मैंने देखा है 

मदमस्त रौशनी की एक सूक्ष्म सी किरण को 

हर ओर फैले स्याह अन्धकार को मिटाते हुए 

मैंने  देखा है 


हाँ मैंने देखा है 

सदियों से बंदिशों की क़ैद से छूटे हुए उस पंछी को 

विशाल अनंत आकाश में पंख फैलाये उड़ते हुए 

मैंने देखा है 


हाँ मैंने देखा है 

उपवन में खिलखिलाते रंग बिरंगे पुष्पों को 

बंजर ज़मीन का सीना चीर कर अस्तित्व में आते हुए 

मैंने देखा है 


हाँ मैंने देखा है 

सुकून और स्नेह की सुन्दर मशाल से फैले उजाले को 

संताप, दुःख और वेदना की कालिमा को मिटाते हुए 

मैंने देखा है 


हाँ मैंने देखा है 

स्वयं के साथ हुए हर उस अपमान और तिरस्कार को 

परमात्मा के नेक-दिली से आशीर्वाद में बदलते हुए 

मैंने देखा है 


हाँ मैंने देखा है 

पहाड़ों से शोरगुल करती कौतुहल करती सरिता को 

अनगिनत पाषाणशिलाओं में विशाल कटाव करते हुए 

मैंने देखा है 


हाँ मैंने देखा है 

मेरे बच्चे के चेहरे पर नाचती हुई उस अनमोल ख़ुशी को 

मुझे आगे बढ़ता, बनता, संवारता और तरक़्क़ी कर देखते हुए 

मैंने देखा है 


हाँ मैंने देखा है 

मेरे हमसफ़र की नज़रों में नितप्रति मेरे लिए बढ़ते सम्मान को 

मुझे अपना सपना अपनी शर्तों पर जीता देखते हुए 

मैंने देखा है 


हाँ मैंने देखा है 

मेरे कोमल हृदयी, अविकारी, निर्वैर  मुर्शिद की रहमतों को 

जन मानस का मुकद्दर संवारते हुए उनका कल्याण करते हुए 

मैंने देखा है 



डॉ त्रिपत मेहता 


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