हाँ मैंने देखा है
मदमस्त रौशनी की एक सूक्ष्म सी किरण को
हर ओर फैले स्याह अन्धकार को मिटाते हुए
मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
सदियों से बंदिशों की क़ैद से छूटे हुए उस पंछी को
विशाल अनंत आकाश में पंख फैलाये उड़ते हुए
मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
उपवन में खिलखिलाते रंग बिरंगे पुष्पों को
बंजर ज़मीन का सीना चीर कर अस्तित्व में आते हुए
मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
सुकून और स्नेह की सुन्दर मशाल से फैले उजाले को
संताप, दुःख और वेदना की कालिमा को मिटाते हुए
मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
स्वयं के साथ हुए हर उस अपमान और तिरस्कार को
परमात्मा के नेक-दिली से आशीर्वाद में बदलते हुए
मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
पहाड़ों से शोरगुल करती कौतुहल करती सरिता को
अनगिनत पाषाणशिलाओं में विशाल कटाव करते हुए
मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
मेरे बच्चे के चेहरे पर नाचती हुई उस अनमोल ख़ुशी को
मुझे आगे बढ़ता, बनता, संवारता और तरक़्क़ी कर देखते हुए
मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
मेरे हमसफ़र की नज़रों में नितप्रति मेरे लिए बढ़ते सम्मान को
मुझे अपना सपना अपनी शर्तों पर जीता देखते हुए
मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
मेरे कोमल हृदयी, अविकारी, निर्वैर मुर्शिद की रहमतों को
जन मानस का मुकद्दर संवारते हुए उनका कल्याण करते हुए
मैंने देखा है
डॉ त्रिपत मेहता
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