कही भी ले जा रब्बा तेरी मर्जी,
बस अपनी याद बनाए रखना यही है अर्जी।
हर शकले- सूरत में तुझको ही देखूं,
बरसें मेघ तेरे प्रेम के यही दुआ मांगू।
रहू हर पल 'तर' तेरे नूर की मय में,
है यही आरजू न कभी आऊं होश में।
तू देख ले इक नज़र तो हो जाऊँ ''तृप्त'',
कर चुकीं हूँ समर्पित ख़ुद को तेरे दरबार में।
Saturday, January 31, 2009
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नजाने क्यों
नजाने क्यों, सब को सब कुछ पाने की होड़ लगी है नजाने क्यों, सब को सबसे आगे निकलने की होड़ लगी है जो मिल गया है, उसको अनदेखा कर दिया है और जो...
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1 comment:
waah..........bhagwan ke darbaar mein aapki arzi to jaroor hi kabool hogi....kitni shiddat se pukara hai aapne.
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