Wednesday, February 18, 2009

इंतज़ार

हाँ तुझसे प्रेम है,
जब से मैं हूँ तब से प्रेम है

न जमाने मैं है दम, न ख़ुद तुझमे है ताकत
की बाँध सके बेडिया मेरे कदमो में

दर
दर भटक रहे है तेरे चाहने वाले
लिए आरजू तेरे "दरस" की मन में

तेरी बंदगी ही है अब ज़िन्दगी मेरी
तेरी इबादत ही मेरा जुनून

होगी
तो ख़बर तुझे भी तेरे दीवाने की
फिर क्यों है ये पहरे दरमियान -ऐ - फान्सलों के

सिर्फ़ एक झलक जो दिख जाए तेरी
चल रही है "साँसों" की लड़ी इसी इंतज़ार में

4 comments:

Dr Gabby singh said...

very very inspiring and beautiful...........

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह क्या शब्द चुने है,प्रेम को परि्भा्षित करने के लिये.

Vinay said...

भावनाएँ सुन्दर हैं


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चाँद, बादल और शाम
सरकारी नौकरियाँ

vandana gupta said...

aapka prem dono tarah ka lag raha hai ..........ruhani bhi aur parmarthik bhi.
waah kya bat hai

नजाने क्यों

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