Friday, February 20, 2009

"कसक"

वो आए,
और कुछ इस कदर आए की
उनका आना पता भी न चला
वो लाए अपने साथ हजारो सपने,
और चुपके से सज़ा दिए आँखों में
वो लाए बिखेरते अनगिनत खुशियाँ चारो तरफ़,
और भर दिया सूना दामन
वो लाए साथ अपने मेघ प्रेम के,
और बरस कर चल भी दिए
अभी तो आने की आहट भी नही हुई ,
और वो चल दिए
वो गए कुछ इस तरह की,
सपने टूट कर आँखों से बह गए
वो गए कुछ इस तरह की,
खुशियों ने भी दामन छोड़ दिया
वो गए कुछ इस तरह की,
नीर बहता चला गया
फरक सिर्फ़ इतना था,
पहले मेघ बरसाते रहे
और अब नैन

5 comments:

vandana gupta said...

waah waah , bahut khoob..........aapne to jaise haqeeqat bayan kar di.

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह सु्न्दर रचना है,सुन्दर विचारो की प्रस्तुति्.

Shamikh Faraz said...

prerna ji bahut khub likhti hain aap. maine pahli bar aapka blog visit kiya kafi achha laga.

Shamikh Faraz said...

prerna ji agar main aap likhne me intrest rakhti hain to main aapko invite karna chaunga k mere blog ke lie aik prerna se bhari kavita likhe. aur han ho sake to mere blog ko 1 bar dekh

Dr. Tripat Mehta said...

shukriyaa..

नजाने क्यों

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