Monday, May 24, 2010

क्या कहूँ

तुम्हें किस नाम से पुकारूं
तुम्हारी किस किस अदा का क्या क्या नाम रखूँ

तुम्हें खुशनुमा हवा का केवल एक झोंका कहूँ
या अन्दर तक झंझोड़ देने वाली तीव्र आंधी...

तुम्हें मेरी आत्मा को "तृप्त" करने वाला शीतल नीर कहूँ
या मेरी देह को अमृत बनाने वाला क्षीर सागर...

तुम्हारे जीवन में मेरे अस्तित्व को
अपनी खुशनसीबी समझूँ
या तुम्हारी उदारता का एक सूक्ष्म उद्हारण...

तुम्हें चारों तरफ निस्वार्थ प्रेम की
रंगीन कलियों की महक बिखेरने वाली पवन कहूँ
या खुशबूदार खिलखिलाते फूलों से सजा बागीचा...

निर्णय नहीं ले पा रहीं हूँ
कि...

तुम्हें चिलचिलाती गर्मी में
धरा को हरा भरा बनाने वाली वर्षा की पहली बूँद कहूँ
या सावन के नीर बरसाते घनघोर बादल...

तुम्हें काले अँधेरे के सीने को चीरती हुई रोशनी की किरण कहूँ
या पूनम की रात्री का मदहोश कर देने वाले चाँद की चाँदनी...

तुम्हें शंख में छिपा मोती कहूँ
या कुबेर की खज़ाना...

समझ नहीं पा रही हूँ
कि...

तुम्हें ब्रह्म कि ऊर्जा बिखेरने वाला रथ कहूँ
या स्वयं ब्रह्म...

37 comments:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर रचना है !

Mr Happy said...

i felt like i could read on and on , it should never end .....


aap ne jo bhi kahan hain
bahoot khoob kahan hain
beautifully written :)

कडुवासच said...

...बहुत सुन्दर ... अदभुत !!!

Anonymous said...

कुछ कहा फिर कुछ-कुछ और फिर जो कहा उससे आगे तो कुछ कहा भी नहीं जा सकता:
"तुम्हें ब्रह्म कि ऊर्जा बिखेरने वाला रथ कहूँ
या स्वयं ब्रह्म..."
शानदार शब्द और अनूठी उपमाओं से सजी लाजवाब रचना के लिए हार्दिक बधाई (खुशनसीब है वो जिसको ये रचना समर्पित है)

Dr. Tripat Mehta said...

bahut bahut shukriya...

rakesh ji khushnaseeb to mein hu..ki mere jeewan mein koi aisa hai..jiske liye mein ye kavite likh saku... :)

Anonymous said...

अगर खुद "ब्रह्म" हैं तब आप सही हैं - अगर इंसान है तो मैं

Urmi said...

बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा रचना लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा!

अरुणेश मिश्र said...

गूँगे का गुड़ ।

* મારી રચના * said...

ab main kya kahun? :) bahut hi sundar rachana...

Unknown said...

aapki rachna bahut sundar hai
:)
kripya mera blog padhkar mujhe margdarshit kijiye ki mujhe apni kavitao me kya sudhar karna chahiye
:)
:P
www.meriankahibate.blogspot.com

Prem Farukhabadi said...

aapne jo khushi ke palon ka chitran kiya hai.maano kavita mein pran se pad gaye hon.kavita kaabile gaur, kaabile tareef hai.

Dimple said...

Hello,

Very beautifully composed and fantastic depth !!
It seems to be a flood of emotions :)

I simply loved it!
Keep writing...

Regards,
Dimple

Razi Shahab said...

nice poetry

sm said...

nice poem
very touching

Shabad shabad said...

Tu koee bhee naam de de mujhe,
par apna zroor keh dena- mere apne.

Bahut hee sunder rachna hai aap kee.
Mubark!
Hardeep
http://shabdonkaujala.blogspot.com

Dr. Tripat Mehta said...

@ babli- shukriya
@ arunesh, Khushi - dhanyawaad

@ shubh - apka blog visit kara tha meine..aapp to pehele se hi itna acha likhte hai...zarroorat nhi hai kisi ke marg darshan ki..bas apni atma ki awaz ko kalam ke zariya kagaz par utaarte rhiye

@ Prem - sach kaha..dhanyawad

@ Dimps - thsnkd for the inspiration

@razi sm and Dr hardeep - bahut bahut shukriya :)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

प्रेम को शब्दों में बंधना कितना कठिन है..!
..अच्छी कविता के लिए बधाई.

माधव( Madhav) said...

thanx for commenting on my Blog

Akhilesh pal blog said...

bahoot khoob mere blog par aane ke liye danyvaad

दिगम्बर नासवा said...

तुम्हारे जीवन में मेरे अस्तित्व को
अपनी खुशनसीबी समझूँ
या तुम्हारी उदारता का एक सूक्ष्म उद्हारण...

सब कुछ ही तो कह दिया आपने ... बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ...

Ankit said...

Beautiful,
Awesum ,
Excellent !!!
dil ko chuu lene wali rachna hai !!!

never came across such a thing before !!!
will keep reading am a fan already !!!

and
thanx for taking time to read my blog and commenting on it !!!

Happy Blogging and tk cr !!!

Ankit said...

can only say ki iske baad ab main kya kahun !!!

appu said...

तुम्हें मेरी आत्मा को "तृप्त" करने वाला शीतल नीर कहूँ
या मेरी देह को अमृत बनाने वाला क्षीर सागर...

very nice lines...luvd ur writing

Dr. Tripat Mehta said...

thank u all guys :)))))

SURINDER RATTI said...

Prerna Ji,

Bahut hi sunder lagi aapki rachna, woh Brahm hi hai Ishwar Shrishti Karta, Woh Anek rup banakar manav ka aur dusare sare jivon ka palan haar hai.

Surinder Ratti

Sumit Pratap Singh said...

सुन्दर अभिव्यक्ति...

nil said...

Kyaa batau! I'm spellbound!!!!

इस्मत ज़ैदी said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सुंदर अभिव्यक्ति.

adwet said...

बहुत सुंदर... बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ...

डॉ .अनुराग said...

एक अलग अंदाज़ में लिखी गयी रचना....क्या एक सिटिंग में लिखी गयी है ?सुन्दर...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

असमन्जस को बहुत खूबसूरती से उकेरा है आपने.

Dr. Tripat Mehta said...

@ surinder ji - shukriya
@ Sumit & nil - thanks
@ ismat & bechaen atma - thanks a lot
@ adwet - thanks :)
@ dr anurag - ji ek hi sitting mein likhi hai :D
@ Vandana - thanks :))

ज्योति सिंह said...

तुम्हें खुशनुमा हवा का केवल एक झोंका कहूँ
या अन्दर तक झंझोड़ देने वाली तीव्र आंधी...

तुम्हें मेरी आत्मा को "तृप्त" करने वाला शीतल नीर कहूँ
या मेरी देह को अमृत बनाने वाला क्षीर सागर...bahut sundar

ज्योति सिंह said...

bahut hi badhiya

संजय भास्‍कर said...

काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

Archana writes said...

bahut khubsurati se aapne apni feelings ko shabado me dala hai....very beautifully written...thanks archana

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