आज एक बार फ़िर से
वही दौर आया है...
वो फ़िर से हर गली मुहल्ले में
अपनी आवाज़ घर घर बिखेरते
नज़र आने लगे...
फ़िर से वही नकली, झूठी
दिल को दिलासा देने वाली दलीलें
शहर के हर मोड़ पर सुनाई देने लगी....
दलील है..वोट दो...
उसे नही...मुझे दो...
सोच में पढ़ गई हू
किसे दू और किसे नही....
कौन साचा है कौन झूठा...
कौन देश की उन्नति के लिए सहभागी है
और कौन नही...
अपने ही विचारों में उलझ सी गई हू...
इस जन्तो जेहेन में फंस गई हू
न ख़ुद के साथ और न ही
समाज के साथ
न्याय नही कर पा रही हू
वो कहतें है आपका वोट कीमती है...
पर सबको पता है
परदे के पीछे यही वोट बिकता है...
आम आदमी को कौन पूछता है
उन्हें तो सिंघासन चाहिए
और उन्हें मिल भी जाएगा...
आम आदमी से ही खरीदा हुआ
झूठे दिलासे दे कर
सिंघासन....
हैरान हू
की हम सच में अभी तक
आजादी के बासठ सालों के बाद भी
आँखें खोल कर सो रहे है....
या कभी जागना चाहते ही नही...
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नजाने क्यों
नजाने क्यों, सब को सब कुछ पाने की होड़ लगी है नजाने क्यों, सब को सबसे आगे निकलने की होड़ लगी है जो मिल गया है, उसको अनदेखा कर दिया है और जो...
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5 comments:
voter agar jaag gayaa to aadmi jaag jaayega...aur aadmi agar jaag gayaa to...bhaarat se raajneta hi vidaa ho jaayenge....!!
sahi baat hai hum ankhe khol ke hi sote hai...kuchh dekhna nahi chate.....
आँखें खोल कर सो रहे है....
या कभी जागना चाहते ही नही...
ye donoN panktiyaN achchhi lagi.
jeeti rahiye. jagti rahiye. likhti rahiye.
aapke amoolya wichaaroon ka hamesha mere blog par swagat rahega...
shukriya
आँखें खोल कर सो रहे है....
या कभी जागना चाहते ही नही...
सामयिक रचना....!!
सही लफ्जों में सच्चाई बयाँ करती पंक्तियाँ ......!!
[ye word verification hta den ]
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