नजाने क्यों, सब को सब कुछ पाने की होड़ लगी है
नजाने क्यों, सब को सबसे आगे निकलने की होड़ लगी है
जो मिल गया है, उसको अनदेखा कर दिया है
और जो नहीं मिला है, उसको जीत जाने की होड़ लगी है
अपने हिस्से के आसमान को भुला दिया है
और दूसरे की फलक को छीनने की होड़ लगी है
ख़ुद के कर्मों से बहुत कुछ बहुत सुंदर पा लिया है
लेकिन फिर भी गैर के आगोश में समां जाने की होड़ लगी है
नजाने क्यों...
डॉ त्रिपत मेहता